बाजी प्रभु देशपांडे जीवन परिचय || Baji Prabhu Deshpande Jeevan Parichay
Baji Prabhu Deshpande Jeevan Parichay
Baji Prabhu Deshpande Jeevan Parichay : बजे प्रभु पांडे मेरठ इतिहास में बढ़ाई महत्वपूर्ण नाम है वह छत्रपति शिवाजी महाराज के फैंसी निडर और देशभक्ति से परिपूर्ण व्यक्तित्व वाले सरदार थे बाजी प्रभु देशपांडे मार्वल के देश कुलकर्णी थे बाजी की वीरता की देख कर ही महाराज शिवाजी ने उनको अपने युद्ध सेवा में उच्च पद पर रखा शिवाजी के साथ रहकर पुरंदर कोडाला और राजापुर के जिले जीतने में भर्षक मदद की बजे प्रभु ने रोटी है किले को मजबूत किया और आसपास के किलो को भी शूट किया इससे वीरबाजी को मालों का जबरदस्त कार्य करता समझा जाने लगा प्रांत में उसका पर्वत हो गया
और लोग उसका सम्मान करने लगे और इसके बाद डेढ़ 2 वर्ष में मावला के जिले को जीतने में तथा किलो की मरम्मत करने में बाजी ने खून परिश्रम किया तारीख को अफजल खान की मृत्यु होने के बाद आदिश और सिद्धि की इत्यादि ने शिवजी को चारों तरफ से घर कर पर्यंत किया पहन हाल किला से निकल भागना शिवाजी के लिए अत्यंत कठिन हो गया इस समय बाजी प्रभु ने उनकी सहायता की शिवाजी को अभी सुना देकर स्वयं बाजी घर की घाटी के दरवाजे में घाट डाटा रहा तीन चार घाटों तक घनघोर युद्ध हुआ बाजी प्रभु ने बड़ी वीरता दिखाई उसकी बड़ी
भाई फुलाजी इस युद्ध में मर गया बहुत सी सी भी मारी गई बहुत से सुना भी मारी गई घायल होकर भी बड़ी अपनी सेवा को प्रदोष सहित करता रहा जब शिवाजी रगड़ा पहुंचे तो इन्होंने टॉप की आवाज से बड़ी बाजी प्रभु को गढ़ में अपने सॉन्ग कुशल प्रवेश की सूचना दी बाजी प्रभु देश पड़े ने आदि शाही नामक राजा के सेनापति अफजल खान को शिकस्त देने में अत्यंत ही या हम भूमिका अदा की थी
बाजीप्रभु देश पांडे की उम्र कितनी थी?
बाजी प्रभु देशपांडे 1615 से 1660 एक नामी वीर थे मराठा के इतिहास में उनका महत्वपूर्ण स्थान है इनका जन्म मराठी कब से आज परिवार में हुआ था तथा यह एक वीर मराठा योद्धा थे उनकी वीरता से प्रभावित होकर शिवाजी महाराज ने इन्हें अपनी सेवा में आम स्थान दिया था इन्होंने मुगल सी से युद्ध करते वक्त अपनी वीरता का परिचय देते हुए मुगल सेवा की एक सौ से भी अधिक खूंखार सैनिकों से अकेले युद्ध किया तथा सभी को मौत के घाट सुला दिया तथा जीत हासिल की इन्होंने वीरता और कौशल का अंदाज जब सिर्फ इस बात से लगाया जा सकता है
कि कोई भी अकेला सैनिक इसे युद्ध करने का साथ नहीं करता था पवन सिंह एक भारतीय मराठी भाषा के ऐतिहासिक एक्शन ड्रामा फिल्म है जो जी पागल जालंकर द्वारा निर्देशित किया फिल्म के सहयोग से या मराठा साम्राज्य पर 8 फिल्मों की श्रृंखला शिवाजी अष्टक ने तीसरी फिल्म में शेर शिवराज के पीले आया लेकिन स्वर्ग और सस्ती टेस्ट के बाद फर्ज और सस्ती कष्ट के बाद डिंपल लोग कर दे मुकाम मराठा नायको पर इस तीसरी फिल्म की घोषणा किया फिल्म 43 करोड़ उसे 6 पॉइंट 28 मिलियन के साथ एक बड़ी व्यवस्थित फिल्म अब तक की पांचवीं सबसे ज्यादा कमाई करने वाले फिल्म बन गई
बाजीप्रभु देश पांडे से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारी
नाम | बाजी प्रभु देशपांडे |
जन्म | 1615 ई. |
जन्म स्थान | भोर तालुक, पुणे |
धर्म | हिन्दू |
मृत्यु | 1660 ई. |
मृत्यु स्थान | कोल्हापुर (महाराष्ट्र) |
वंश | चन्द्रसेनीय कायस्थ प्रभु वंश |
प्रसिद्धि | मराठा सरदार |
बाजी प्रभु देशपांडे की भूमिका किसने निभाई?
पूरे जनपद में भर तहसील के एड्रेस के समीप मोबाइल के सरदार ने बाजी प्रभु देश पांडे व मार्वल के कुल देश कुलकर्णी थे शिवाजी महाराज के विरोधी बादलों के वह दीवान थे बाजी प्रभु देशपांडे स्वयं पराक्रमी योद्धा थे साथ ही हुए त्यागी स्वामी लिस्ट एवं किसी भी प्रभ्रोवन के वश में आने वाले नहीं थे 50 वर्ष की आयु में बिन थके हुए दिन के 20 से 22 घंटा काम करने वाले बजे का संपूर्ण मोबाइल प्रांत में प्रभाव था उनकी पूरा सक्रिय कुशलता एवं शौर्य को देख उनके जैसे सर गुफरांत व्यक्तित्व को छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपनी और खींच लिया बाजी ने
भी स्वराज के लिए अपने निष्ठा शिवाजी महाराज जी के चरणों में आप पढ़ कर दे महाराज से आओ में विंदबाजी के मन में महाराज के प्रति अत्यधिक प्रीमियम भक्ति भाव था एवं पिता सम्मान चिंता की भावना थी पन्ना अनूपपुर श्रद्धा द्वारा आक्रमण होने पर वहां से शिवाजी महाराज जी को छुड़ाना उन्हें बेसेलागढ़ तक पहुंचना आने की व्यवस्था करना इन भूमिकाओं को निभाते समय बड़ी ने केवल अपना स्वर ही नहीं आप ही तो अपने प्राण भी दांव
पर लगा दिए थे या घटना बहू में बाल उत्पन्न करती है एवं स्वराज के प्रति रोम रोम में अभियान आज भी जाग्रत करती है बाजी ने लाखों लोगों को पहुंचाने वालों की अर्थ टी समय शिवाजी महाराज सुरक्षा के लिए अपना देह पूर्ण किया उनका यह अतुल पराक्रम आक्रमण महाराष्ट्र की अश्क वीडियो द्वारा अपने शरण में रख दिया जाएगा
पवनखिंद का युद्ध कब हुआ था?
सिद्धी जोहर ने सावधानीपूर्वक और कुशलता से पंढल के चोरों और घेराबंदी का निर्माण किया था सबसे पहले सिद्धी जोहर ने शिवाजी से एक वकील प्राप्त किया यह घोषणा करते हुए कि वह उनके साथ एक समझौता करने को तैयार है परिमाण स्वरूप सिद्ध जौहर और उसकी सेवा ने ऐसा करना शुरू कर दिया क्योंकि वह जानते थे कि उनकी लंबी घेराबंदी जल्द ही समाप्त हो जाएगी फिर वह गहरा बंदी कर रही लगभग 10000 आदि शाही सी से बचना असंभव लग रहा था योजना के अनुसार शिवाजी के बाजी प्रभु देशभक्ति ही कमान में 600 योद्धाओं ने पूर्णिमा की
रात की मौत पर घेराबंदी तोड़ दी आश्चर्य जनक रूप से वह सफल रहे और वह अब विशालगढ़ की ओर छोड़ रहे थे दुश्मन ने पीछा किया और पंढल से शिवाजी के भागने की सीख के बाद उनके सेवा के एक हिस्से पर कब्जा कर लिया जिसे नरेश को बंदी बना लिया गया हुआ ढोंगी निकला उसका नाम शिवाजी का सर था आदिलशाह के सी ने मामले की सरफरिश की इस बार सिद्धि जवाहर ने दामाद सिद्धि मसूद ने कमान संभाली शिवाजी घोड़खंड
हर्ष साहब पास के नाम से जाने जाने वाले घाट पर पहले ही आ चुके थे जो पवन सिंह खंडा की लड़ाई स्थान था इसके शंकर यह बुनियादी ढांचे के कारण केवल कुछ ही सैनिक की एक बार से बात कर सके थे शिवाजी महाराज ने विशालगढ़ किले की टहलहाती में एक और घेराबंदी तोड़ी बाजी प्रभु उनके भाई फुलाजी
और संभाजी यादव ने 3000 आदमियों की मदद से डर है क्या सफलतापूर्वक रक्षा की यह घायल हो गई और सिद्धि मसूद ने योद्धा दोनों हाथों में तलवार लिए हुए 3000 सैनिकों को वहां से ढंग से लड़ते हुए साहब सहन गए इन्होंने तब तक हार नहीं माने जब तक कि इन्होंने किले से शिवाजी के तोपों की फायरिंग नहीं सुनी जो इस बात का संकेत था कि वह सुरक्षित पहुंच गए और आज पवन खंड का पवित्र दर्द कहा जाता है